are dwarpalo lyrics प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा जी में कितनी घनिष्ट मित्रता थी इसके बारे में तो सभी जानते ही है। प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा जी बचपन के ही मित्र थे परन्तु जहाँ श्री कृष्ण राजा थे वही सुदामा एक दरिद्र निर्धन ब्राह्मण। आज भी जब सच्ची मित्रता की बात होती है तो सबसे पहले प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा जी का नाम लिया जाता है। प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा जी की मित्रता से हमें यह सीख मिलता है कि मित्रता ऊच नीच, निर्धन धनी, जात पात इन सबसे ऊपर है। और मित्रता केवल विश्वास पर टिका होता है। सुदामा जी का अपने मित्र पर यही विश्वास उन्हें अपने मित्र श्री कृष्ण के महल तक ले आया। लखवीर सिंह लख्खा जी द्वारा गाया गया Are Dwarpalo Lyrics यह भजन प्रभु श्री कृष्ण और सुदामा जी कि इसी दोस्ती को समर्पित है। तो आइये हम भी इस भजन बोल के साथ गाते है।
are dwarpalo lyrics
देखो देखो ये गरीबी,ये गरीबी का हाल
कृष्ण के दर पे विश्वास लेके आया हूँ
मेरे बचपन का यार है.. मेरा श्याम,
यही सोच कर मै आस कर के आया हूँ.
अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो
अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो
के दर पर सुदामा गरीब आ गया है
भटकते भटकते ना जाने कहा से
तुम्हारे महल के करीब आ गया है
अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो
के दर पर सुदामा गरीब आ गया है
||ना सरपे है पगडी ना तन पे है जामा
बतादो कन्हैया को नाम है सुदामा हा…
बतादो कन्हैया को नाम है सुदामा,
बस एक बार मोहन से जा कर के कह दो
तुम एक बार मोहन से जा कर के कह दो
के मिलने सखा बदनसीब आ गया है ||
||अरे द्वारपालो कन्हैया से कहदो
के दरपे सुदामा गरीब आ गया है||
सुनते ही दौड़े चले आये मोहन,
लगाया गले से सुदामा को मोहन हा…
लगाया गले से सुदामा को मोहन
हुआ रुख्मिणी को बहुत ही अचंभा
ये मेहमान कैसा अजीब आ गया है
||अरे द्वारपालो कन्हैया से कहदो
के दरपे सुदामा गरीब आ गया है ||
बराबर में अपने सुदामा बिठाये
चरण आँसुओं से श्याम ने धुलाये
चरण आँसुओं से प्रभु ने धुलाये
ना घबरायो प्यारे जरा तुम सुदामा
ना घबरायो प्यारे जरा तुम सुदामा
खुशी का समां तेरे करीब आ गया है
||अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो
के दरपे सुदामा गरीब आगया है||
सुदामा निर्धन क्यों थे ?
पौराणिक कथाओ के अनुसार सुदामा जी का जन्म एक सम्पन परिवार में हुआ था परन्तु किसी गरीब ब्राह्मणी के श्राप के कारण सुदामा जी निर्धन हो गए थे।
पौराणिक कथाओ के अनुसार एक गरीब ब्राह्मणी थी जो वासुदेव जी का नाम जपते हुए अपना गुजारा भिक्षा मांग कर करती थी। एक समय कि बात है ब्राह्मणी को कई राते बिना भोजन के ही सोना पड़ा क्युकी कई दिनों से उसे भिक्षा नहीं मिली थी। कुछ दिन बाद जब उसे कुछ चने मिले तो उसने उस चनो को संभल कर रख दिया ताकि अगली सुबह वह वासुदेव को भोग लगाकर उसे ग्रहण कर सके। परन्तु दुर्भाग्य वश वह चना चोर चुराकर ले गए और लोगो से डरकर चने को मुनि संदीपन के आश्रम में छोड़ दिया। इसी आश्रम में कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण करते थे। अगली सुबह जब कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ी काटने गए तो गुरुमा ने उन्हें कुछ चने दिए और कहा यदि भूख लगे तो दोनों बराबर बराबर बाट लेना। सुदामा ब्राह्मणज्ञानी थे वह चना की पोटली को हाथ में लेते ही समझ गए यह चना श्रापित है जो भी खायेगा दरिद्र हो जायेगा और सुदामा नहीं चाहते थे कि प्रभु दरिद्र हो इसलिए जिस समय कृष्ण जी पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहे थे उस समय सुदामा जी सारा चना खुद ही खा गए और उस गरीब ब्राह्मणी का श्राप अपने ऊपर ले लिया। क्योकि गरीब ब्राह्मणी से श्राप दिया जो भी उस चना को खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा।