जानिएdev uthani ekadashi vrat katha २०२३ पढ़ने का महत्त्व

dev uthani ekadashi vrat katha इस साल 23 नबम्बर 2023 को देव उठानी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष कि एकादशी तिथि को देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को भगवान् विष्णु योग निद्रा से जागते है। और ब्रह्माण्ड का कार्यभार सँभालते है। भगवान् विष्णु के निद्रा से जागने के बाद ही सभी शुभ कार्य आरम्भ हो जाते है। लोग इस दिन विष्णु भगवान् की पूजा करते है। व्रत रखते है,वह dev uthani ekadashi vrat katha सुनते है। ऐसा माना जाता है इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

dev uthani ekadashi vrat katha

देव उठानी एकादशी व्रत कथा

 

प्राचीन समय की बात है एक राजा के नगर में सभी लोग श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत रखते थे। एकादशी के दिन नगर का कोई भी मनुष्य अन्य ग्रह नहीं करता था। सभी इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु की भक्ति करते थे।
एक बार उस राजा के नगर में किसी ओर राज्य से एक मनुष्य आया और उसने राजा से कहा। हे राजन मुझे नौकरी पर रख लीजिए। राजा ने उस मनुष्य से कहा तुम्हें नौकरी पर तो रख लूंगा परंतु तुम्हें रोज सब कुछ खाने को लेकिन एकादशी के दिन तुम्हें कुछ खाने को नहीं मिलेगा।
क्योंकि इस दिन राज्य के सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं।
राजा के कहने के मुताबिक व्यक्ति राजी हो गया। लेकिन उसके लिए भूखा रहना कोई आसान कार्य नहीं था। कुछ दिन बाद एकादशी का दिन आया। राज्य के सभी लोगों ने व्रत रखा। परंतु उस आदमी ने राजा से कहा हे राजन मुझे खाने के लिए कुछ दे दीजिए। लक्ष्मी चालीसा
राजा ने उसे फलाहार का सामान दिया। परंतु फलाहार का सामान पाकर वह आदमी खुश ना हुआ। वह बोला महाराज मुझे अन्य दिया जाए। क्योंकि इस सामान से मेरा पेट ही नहीं भरेगा।
राजा ने उसे अपनी रखी हुई शर्त याद दिलाए। परंतु वह व्यक्ति राजा के सामने बहुत ही गिडगिराने लगा गया। और बोला राजन मुझे अन्य दे दीजिए। राजा को उस पर दया आ गयी।
फिर राजा ने उसे अन्य का सामान दिया। और बोले जाओ नदी के किनारे भोजन बना के खा लो और खाने से पहले भगवान् को भोग अवशय लगा देना।

dev uthani ekadashi vrat katha

व्यक्ति सारा सामान लेकर नदी के किनारे पहुंच गया। और उसने खाना बनाया और खाने खाने से पहले भगवान को भोग लगाने के लिए भोजन निकला। फिर भोजन निकाल कर भगवान को पुकारने लग गया भगवान भोजन तैयार है। आओ भोग लगा लो। भगवान ने उसकी सुनी और पीतांबर धारण किए हुए चतुर्भुज वाले विष्णु देव जी पहुंच गए। और प्रेम से उस व्यक्ति के साथ भोजन करने लगे। भोजन करने के बाद भगवान वहां से अंतर्धयान हो गए। इसके बाद वह व्यक्ति अपने काम पर चला गया।

जब अगली बार फिर एकादशी आया तो उसने राजा से कहा। राजन मुझे दोगुना सामान दीजिए। क्योंकि मैं तो उस दिन भूखा ही रह गया था। मैंने जो भी भोजन बनाया वह तो सब भगवान् ही खा कर चले गए।
राजा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। राजा उस व्यक्ति पर क्रोधित होते हुए बोला। तेरे बुलाने पर क्या भगवान तेरे साथ भोजन करने आएंगे।
मुझे तेरी बातों पर यकीन नहीं। फिर उस आदमी ने कहा महाराज, अगर आपको मुझ पर भरोसा ना हो तो आप चलिए आज पेट के पीछे छुप कर सब देख लीजिएगा।
राजा तैयार हो गया वह व्यक्ति फिर नदी किनारे पहुंचा भोजन बनाकर भगवान के लिए भोजन निकाल कर भगवान को पुकारने लग गया।

विष्णु चालीसा
प्रभु आइये भोजन ग्रहण कीजिए। परंतु उस दिन भगवान् उस व्यक्ति के साथ भोजन करने नहीं आए। व्यक्ति ने कई बार पुकारा परंतु भगवान फिर भी नहीं आए।अंत में वह आदमी बोला। हे प्रभु यदि आप मेरे साथ भोजन करने नहीं आए. तो मैं नदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दूंगा।
प्राण त्यागने के उद्देश्य से व्यक्ति नदी की ओर बढ़ा और जैसे ही नदी में कूद कर अपने प्राण त्यागने ही वाला था। कि भगवान प्रकट हो गए और उसे रोक लिया। फिर उन्होंने उसके साथ बैठकर भोजन किया और -अपने धाम को चले गए।

dev uthani ekadashi vrat katha

यह सब देखकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ कि वह इतने समय से व्रत कर रहा है फिर भी उसे भगवान् के दर्शन नहीं हुए। और इस नौकर के पुकारने पर भगवान् आकर उसके साथ भोजन करने लगे। तब राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ कि व्रत को हमेशा शुद्ध मन से किया जाना चाहिए। तभी भगवान आपके व्रत को स्वीकार करते हैं। भगवान् को प्रसन्न करने के लिए यह आवश्यक है की आपका आचरण, वाणी, कर्म शुद्ध हो।
फिर राजा ने इसी प्रकार से शुद्ध मन से भगवान् का व्रत और भक्ति करने लगे। और जीवन के सभी सुखो को भोकर कर स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top